ओमेगा-3 की क्वालिटी आपके सोचने से कहीं ज्यादा मायने रखती है
हम सभी जानते हैं कि omega-3s हमारे लिए फायदेमंद हैं। ये दिल की सेहत, दिमागी कार्यक्षमता, प्रेग्नेंसी और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। लेकिन एक बात जो ज्यादातर लोग नहीं जानते: सभी omega-3 सप्लीमेंट्स एक जैसे नहीं होते – और फर्क छोटा नहीं है।
एक नई peer-reviewed स्टडी (Torshin et al., 2025) ने दिखाया है कि मार्केट में उपलब्ध omega-3 प्रोडक्ट्स की क्वालिटी में कितना बड़ा अंतर है। रिसर्च टीम ने 16 omega-3 सप्लीमेंट्स का एनालिसिस किया, जिसमें ओवर-द-काउंटर फिश ऑयल्स और फार्मास्युटिकल-ग्रेड प्रोडक्ट्स शामिल थे, और इसके लिए एडवांस्ड क्रोमैटोग्राफिक और स्टैटिस्टिकल मेथड्स का इस्तेमाल किया।
नतीजे? चौंकाने वाले।
लेबल के पीछे: आपके omega-3 में असल में क्या है?
कागज पर, ज्यादातर प्रोडक्ट्स “omega-3” कंटेंट लिस्ट करते हैं – कभी-कभी इसे EPA और DHA के रूप में भी बताते हैं। लेकिन यही पर समानता अक्सर खत्म हो जाती है।
जब लैब में टेस्ट किया गया, तो प्रोडक्ट्स में फैटी एसिड प्रोफाइल्स में जबरदस्त फर्क दिखा। कुछ में 98.9% तक omega-3 कंटेंट था – लगभग पूरा EPA और DHA के हाईली बायोएवेलेबल फॉर्म में। वहीं कुछ में 46% तक सैचुरेटेड फैट्स मिले, जिससे एक्टिव omega-3s 15% से भी कम रह गए। असल में, एक सप्लीमेंट में 0% EPA था।
दो सिंपल नंबर सच्चाई दिखाते हैं
रिसर्चर्स ने पाया कि आप सिर्फ दो मार्कर्स से omega-3 सप्लीमेंट की क्वालिटी प्रेडिक्ट कर सकते हैं:
- EPA + DHA कंटेंट > 55%
- ω11 (omega-11) फैट कंटेंट < 3%
अगर कोई प्रोडक्ट दोनों थ्रेशहोल्ड्स को पूरा करता है, तो वह काफी हद तक रिफाइंड, स्टैंडर्डाइज्ड और असरदार omega-3 सप्लीमेंट है। अगर नहीं, तो आप शायद एक लो-ग्रेड ऑयल के लिए पैसे दे रहे हैं, जिसका क्लिनिकल फायदा बहुत कम है।
इस सिंपल रूल ने टेस्ट किए गए प्रोडक्ट्स को दो क्लियर क्लस्टर्स में बांट दिया – हाई-क्वालिटी और लो-क्वालिटी – जिनमें कोई ओवरलैप नहीं था।
हाई प्योरिटी vs. हाई हाइप
स्टडी के मल्टीवेरिएट एनालिसिस में NFO Omega-3 Ultima, Omacor (एक फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट), और Solgar Omega-3 950 जैसे प्रोडक्ट्स टॉप पर रहे। इन सप्लीमेंट्स में:
- 90% से ज्यादा टोटल omega-3s थे
- EPA और DHA की डोज उतनी या उससे ज्यादा थी जितनी क्लेम की गई थी
- इम्प्योरिटीज या सैचुरेटेड फैट्स नगण्य थे
- Standardization Coefficients (SC) 100% से काफी ऊपर थे, जो सिर्फ लेबल की सटीकता ही नहीं, बल्कि कंपोजिशनल एक्सीलेंस भी दिखाते हैं
दूसरी तरफ Omeganol और Dear-Natura DHA जैसे प्रोडक्ट्स थे, जिनमें:
- लेबल क्लेम्स से कम (SC < 100%)
- ज्यादा नॉन-omega फैट्स थे
- बहुत कम EPA या DHA था
आपकी सेहत के लिए इसका क्या मतलब है
हकीकत ये है: रिसर्च-समर्थित हेल्थ बेनिफिट्स उन्हीं सप्लीमेंट्स से मिलते हैं जो वाकई में स्टडी की गई डोज़ में EPA और DHA डिलीवर करते हैं। अगर आपके omega-3 में ज्यादातर फिलर फैट्स हैं, तो आप फायदा मिस कर रहे हैं – या इससे भी बुरा, अपनी डाइट में अनावश्यक सैचुरेटेड फैट जोड़ रहे हैं।
और भले ही “fish oil” एक कॉमन टर्म है, स्टडी इस बात पर जोर देती है कि हमें बेहतर शब्दावली की जरूरत है। सभी omega-3s मछली से नहीं आते, और सभी omega-3 प्रोडक्ट्स “ऑयल्स” नहीं होते बायोकैमिकल सेंस में। अब वक्त है कि हम स्टैंडर्डाइज्ड, प्योरिफाइड omega-3 प्रिपरेशन पर फोकस करें जो सच में हेल्थ को सपोर्ट करें।
स्मार्ट omega-3s चुनना
तो आप कैसे सुनिश्चित करें कि आपका सप्लीमेंट अपना काम कर रहा है? देखें:
- EPA और DHA वैल्यूज क्लियरली मेंशन हों (सिर्फ “omega-3s” नहीं)
- थर्ड-पार्टी टेस्टेड प्योरिटी और कंसंट्रेशन
- ऐसे रेशियो जो आपकी जरूरतों से मैच करें – जैसे प्रेग्नेंसी के लिए DHA-रिच फॉर्मुलेशन या कार्डियोवैस्कुलर सपोर्ट के लिए EPA-डॉमिनेंट ब्लेंड्स
- ऐसा ब्रांड जो सिर्फ क्लेम्स न करे, बल्कि आपको साइंस भी दिखाए
NFO में, हम मानते हैं कि ट्रांसपेरेंसी और टेस्टिंग ऑप्शनल नहीं हैं – ये ट्रस्ट की नींव हैं। यही वजह है कि हमारे omega-3 प्रोडक्ट्स, जिसमें NFO Omega-3 Ultima भी शामिल है, फार्मास्युटिकल-लेवल स्टैंडर्ड्स पर डेवलप किए जाते हैं।
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